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धनंजय नई दिल्ली : बीजेपी के लिए गुजरात में स्वतंत्रता दिवस 'शांतिपूर्ण' नहीं रहा। पार्टी असंतुष्टों के अगुआ पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने बुधवार को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से राज्य को आजाद करने की मुहिम का ऐलान करके एक बड़ा धमाका किया। अब तक पर्दे के पीछे से बागियों की कमान संभाले केशुभाई के इस कदम से यह अंदेशा गहरा गया है कि पिछले 15 साल से बीजेपी के गढ़ गुजरात पर वास्तविक संकट मंडरा रहा है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में हुए स्वतंत्रता दिवस समारोह में जिस समय देश की आंतरिक सुरक्षा पर चिंता जता रहे थे, उसी समय सूरत में केशुभाई मोदी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रहे थे। उन्होंने वहां एक स्वतंत्रता दिवस समारोह में ऐलान कर दिया कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए प्रचार नहीं करेंगे। गुजरात में इस साल के अंत में चुनाव होना है। गुजरात बीजेपी के इस 'आंतरिक संकट' ने पार्टी आलाकमान को बेचैन कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, केशुभाई के इस तरह खुलकर सामने आने पर गुजरात चुनाव के प्रभारी अरुण जेटली ने पार्टी के बड़े नेताओं से गहन विचार विमर्श किया। केशुभाई अब तक पर्दे के पीछे से मोदी विरोधी मुहिम चला कर रहे थे। पार्टी यह जानते हुए भी उन्हें बीजेपी का सम्मानित नेता कहकर पुचकारने में लगी थी लेकिन उनके ताजा तेवरों के बाद पार्टी यह नहीं समझ पा रही है कि केशुभाई से कैसे निपटा जाए। गुजरात में गहराते संकट के मद्देनजर राजनाथ सिंह ने हाल में महासचिव अरुण जेटली को वहां का चुनाव प्रभारी बनाया है। लेकिन गुजरात बीजेपी में अंतर्कलह की लपटें थमने की बजाय भड़क उठी है। जेटली की योजना थी कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े नेताओं के जरिए केशुभाई को समझा बुझाकर गुजरात संकट हल करेंगे, लेकिन अब केशुभाई ने अपना यह तेवर दिखा कर उन्हें सकते में डाल दिया है। हाल ही में उन्होंने असंतुष्टों की कतार में शामिल पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांसीराम राणा को दिल्ली बुलाकर समझाने की कोशिश की गई थी। सूत्र बताते हैं कि इन नेताओं ने भी साफ कह दिया कि मोदी से कोई समझौता नहीं हो सकता। केशुभाई पटेल ने कहा कि अगर आप आजादी चाहते हैं तो पार्टी से बाहर निकले विधायकों का साथ दीजिए। सिर्फ पाटीदार समुदाय का सवाल नहीं है, सभी तबके के लोग मोदी सरकार से नाखुश हैं। विधायकों को उनसे मिलने के लिए 4-4 घंटे लाइन में खड़ा रहना पड़ता है, वहीं उद्योगपतियों को मिनटों में मिलने का समय मिल जाता है। केशुभाई के इन तेवरों के बाद गुजरात में असंतुष्ट गतिविधियों में और तेजी के आसार हैं।

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