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ये एक और चुनाव है, जब तमिलनाडु के मतदाताओं ने राष्ट्रीय दलों के प्रति अपनी उस चिढ़ को ज़ाहिर किया है, जो 1960 के दशक के हिंदी विरोधी आंदोलन से चली आ रही है.